ललित सहगल के नाटक में षड्यंत्रकारियों के बहाने गांधी जी का चिंतन, जीवन – शैली और उस विचार को अभिव्यक्त किया गया है। जिसमें दोनों पक्षों की जिरह हमें सोचने – विचारने को मजबूर करती है। आपको बताते चलें कि इसमें चार षड्यंत्रकारियों में से एक की असहमति गांधी जी की हत्या के लिए गए निर्णय से होती है और वह बाकि तीन साथियों को छोड़कर जाना चाहता है पर वे तीन साथी साज़िश का भंडाफोड़ न हो जाए इसलिए चौथे को बाकायदा प्लान करके रोकते हैं, गोदाम में आरोप तय कर के कोर्ट की अदालती कार्यवाही करते हैं जिसमें उनका अनुमान होता है कि छोड़कर जाने वाला साथी उनसे सहमत हो जाएगा पर वह षडयंत्रकारी पहले ही स्पष्ट कर देता है कि अभियोजन की भूमिका वह पूरी शिद्दत से लड़ेगा और इसके बाद वह अपने साथियों से किसी भी प्रकार की दोस्ती और संबंध नहीं रखेगा। अभियोजक की यह बात उसके बाकि साथियों के दिमाग में शक पैदा करती है पर उनके पास और कोई उपाय भी नहीं रहता है उसे रोककर रख पाने। एक गोदाम में अभियोजन और अभियुक्त के बीच जिरह शुरू होती है जिसमें वे तमाम बातें सामने आती हैं जिनके बारे में अक्सरहां बातचीत में लोग गांधी जी पर आरोप लगाते हैं।
इस जिरह में कई बार बचे हुए षडयंत्रकारी भी गांधी जी के विचारों से प्रभावित होते लगते हैं और बेचैन होते हैं कि आखिर खुद के बिछाए जाल में हम फंस रहे हैं पर अमानवीय व्यवहार से संचालित मनुष्य ऐसे कवच से अपने आप को खोल से ढंका रखता है जिसे मनुष्यता की किरणें भी भेद पाने में असमर्थ होती हैं।
आइंस्टाइन ने गांधी जी के लिए कहा था कि आने वाली सदी को विश्वास ही नहीं होगा कि कोई ऐसा हाड़मांस (गांधी जी) का व्यक्ति इस धरती में पैदा हुआ था उनके कहे इस एकमात्र वाक्य से उनके व्यक्तित्व की महानता का अंदाज़ लगाया जा सकता है। गांधी जी की चिर विरोधी फासिस्ट शक्तियां उनके आत्म – बल और अनुशासन से भली – भांति परिचित थी तभी न उनके जीवन में इन हैवानों ने पांच बार उन्हें मारने की कोशिश की।
इप्टा के छब्बीसवें नाट्य समारोह के दूसरे दिन रायगढ़ इप्टा ने इस नाटक की प्रस्तुति की जिसके मंचन के लिए बहुत ज़्यादा अभ्यास की आवश्यकता महसूस हुई, स्पीच पर काम किए जाने की जरूरत है, हालांकि निर्देशक ने पहले ही दर्शकों को संबोधित कर दिया था कि आज के मंचन में कलाकार अपनी स्क्रिप्ट के साथ उतरेंगे। जिस गंभीरता की आवश्यकता इस नाटक में है वह कल अनुपस्थित थी।सुरेन्द्र राणा जिस ने गांधी जी के पक्ष को मंच में रखा, कल कुछ हद तक उसने अपने अभिनय के साथ न्याय किया ऐसा मेरा विचार है। उम्मीद करती हूं कि इस नाटक के बेहतरीन मंचन को आने वाले समय में देख पाऊंगी। सभी साथियों को मेरी शुभकामनाएं !