“जाना” यह शब्द जब क्रिया की तरह प्रयोग में आता है तो हमेशा दिल ही तोड़ता है. हम सब का दिल टूटा है, बहुत उदास हैं.
जब आप किसी को जानने की क्रिया में होते हैं तो निश्चित ही यह एक ऐसी यात्रा होती है जिसमें आप बहुत कुछ नया जान रहे होते हो, रच रहे होते हो, गुन रहे होते हो, सरल शब्दों में कहूं तो रचनाशील हो रहे होते हो. रचनात्मकता के साथ एक मनुष्य की कद्र करने वाले, हमारे दिलों में बसने वाले एक बहुत प्यारे, ख़ूबसूरत और जवां दिल और मन के एक प्रतिबद्ध अगुआ का स्मृति बन जाना दिल को बींध रहा है, छलनी कर रहा है, सांत्वना का कोई शब्द सूझ नहीं रहा है कि दिल को मनाया जाए. एक कलाकार के जीवन में संवाद का यूं अकाल और अभाव हो सकता है यह आज ही समझ आया कि बहुत कुछ कह लेने को चाह कर भी निःशब्द, मूक बनें हैं हम सब.
अजय भैया के बारे में इस तरह से लिखना कभी सपने में भी नहीं सोचा था. स्मृतियों के झोंके सुखद नहीं महसूस हो रहे जबकि कल से पहले जब उनको याद करते थे तो एक मुस्कुराहट तैर रही होती थी. ख़ुद को जज़्ब करना बहुतों को मुश्किल लग रहा होगा मेरी तरह. इतनी अनिश्चितता, सन्नाटा और शून्य का भाव कभी पहले ऐसे महसूस नहीं हुआ. लिखकर याद करने की ऐसी दुविधा तो कभी किसी और के लिए नहीं रही. तमाम साथी अपनी-अपनी यादें साझा कर रहे हैं और एक-दूसरे को हिम्मत दिलाने की असफल कोशिश कर रहे हैं.
अपना बना लेने की कला हर एक शख़्स की ख़ासियत नहीं होती है पर इस हुनर के धनी थे वे. कला वो सेतु था जिसके माध्यम से किसी को भी इंसान बनाने का माद्दा रखते थे. यह एक ऐसा बुनियादी लक्ष्य है जो जीवन के हर क्षेत्र में होना चाहिए पर आज इसी की कमी ज़्यादातर जगह दिखती है. १९९५ में विवेचना जबलपुर से अरूण दादा रायगढ़ आए थे वर्कशॉप लेने, जिसमें पहली बार अजय भैया और उषा दी से मुलाकात हुई और यह जीवन का एक ऐसा ज़रूरी मोड़ था कि अगर उनसे नहीं मिलते तो पता नहीं आज थोड़ा बहुत जो इंसान बने रहने की समझ आई वो आती भी या नहीं. वर्कशॉप के बाद भैया-दीदी द्वारा ध्यान रखा जाना असल में हम लोगों को गढ़ने की प्रक्रिया थी. पढ़ने और लिखने के लिए प्रोत्साहित करना, हर बकवास, हर तकलीफ़ सुनना और ख़ुद निर्णय लेने के लिए परोक्ष रूप से तैयार करना, एक लंबी और ऊबाउ प्रक्रिया होती है क्योंकि इतनी बड़ी टीम में हर एक के साथ व्यक्तिगत रूप से जुड़ना और सामूहिकता पर बल देना कोई आसान प्रक्रिया नहीं है और इस लंबे सफर में उनकी एक-एक याद को इस क्षण समेटना कठिन है सो संवाद भैया से जारी रहेगा.
भैया आपको लाल सलाम !