अण्णाभाऊ साठे
भारतीय समाज में देवी-देवताओं, पारम्परिक रूढ़ि-विश्वासों की बहुतायत है। अधिकांश लोग इससे ग्रस्त होते हैं। यहाँ तक कि आधुनिक शिक्षाप्राप्त लोग भी इससे अछूते नहीं रह पाते। अण्णाभाऊ साठे का विवेकवादी मस्तिष्क इस तरह के अंधविश्वासों का पुरज़ोर विरोध करता है। वे अपनी रचनाओं में इस तरह का कोई न कोई चरित्र अवश्य खड़ा करते हैं, जो पूरीतरह तर्कशील, विवेकवान और वैज्ञानिक दृष्टिसम्पन्न हो। वह आधुनिक समाज गढ़ने के लिए विवेक को पूरी ताकत के साथ स्थापित करता है और अंततः विजय भी प्राप्त करता है। यह कहानी भी ग्रामदेवता के प्रकोप के मिथ को तोड़ते हुए आधुनिक मानवताकेन्द्रित विचारों की स्थापना में समाप्त होती है। अण्णाभाऊ साठे के साहित्य में वर्ग-संघर्ष की स्पष्ट चेतना के साथ-साथ भारतीय जाति-व्यवस्था की विविधता और श्रेणीबद्धता का सूक्ष्म विवरण भी मिलता है। किसतरह अलग-अलग जातियाँ अलग-अलग वाद्य-यंत्र बजाने में सिद्धहस्त होती हैं और हरेक जाति का अपना निर्धारित वाद्य होता है, जिसके बनाने से लेकर बजाने का भी वह विशेषज्ञ होता है, इस कहानी में इस बात को देखा जा सकता है। – अनुवादक
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