26 वे राष्ट्रीय नाट्य समारोह के तीसरे दिन रंगरूपिया थिएटर इंदौर ने नाटक “गांधी विरुद्ध गांधी” का मंचन किया। इस नाटक में गांधी और उनके बड़े बेटे हरिलाल के मतभेद प्रस्तुत किये गए है। नाटक की कहानी हरिलाल और गांधी के इर्द गिर्द घूमती है। ये बात सर्वमान्य है की हरिलाल और गांधी में वैचारिक मतभेद था। इसी कथानक को नाटक में बखूबी दर्शाया गया है।
हरिलाल पढ़ना चाहता है बैरिस्टर बनना चाहता है लेकिन गांधी उसे साउथ अफ्रीका की फिनिक्स आश्रम में रहकर व्यवहारिक शिक्षा लेने की बात करते है। जब गांधी को किसी एक बच्चे को पढ़ने के लिए लंदन भेजने का मौका मिलता है तो वे अपने बच्चो की जगह आश्रम के ही छगनलाल को चुनते है। इस बात को लेकर हरिलाल को बहुत तकलीफ पहुंचती है। गांधी हरिलाल को समझते है तुम्हारी जिम्मेदारी बड़ी है।
बाद में छगनलाल लंदन से भागकर वापस आ जाता है । हरिलाल को लगता है की शायद अब उन्हें लंदन जाकर पढ़ने का मौका मिलेगा। लेकिन फिर गांधी के द्वारा किसी और को मौका देने पर हरिलाल निराश हो जाता है। हरिलाल अब अपना खुद का रास्ता खोजने की ठान लेता है और अपनी बीवी गुलाब और बेटी के साथ भारत वापस आ जाता है। पैसे कमाने के लिए हरिलाल विदेशी कपड़े तक बेचने लगता है। इसपर उसकी बीवी गुलाब का उससे मतभेद भी होता है। बाप बेटे के बीच की कशमकश ही नाटक का मूल है।
नाटक में सभी पात्रो ने अच्छा अभिनय किया है, खासकर युवा गांधी की भूमिका में आशीष शर्मा ने गांधी के किरदार को बखूबी प्रस्तुत किया है। नाटक की अवधि 2 घंटे 25 मिनट है। लंबी अवधि के नाटक में शुरुआत बहुत महत्वपूर्ण होती है। युवा गांधी के साथ किशोर हरिलाल की भूमिका में पलाश तिवारी ने नाटक को अच्छी शुरुआत दी। जिसके कारण नाटक लंबा होने के बावजूद दर्शको को बांधने में कामयाब रहा।
इसके अलावा दीपक वाघमारे और अनुराग मिश्र ने भी गांधी की भूमिका में प्रभावित किया। युवा और मध्य वय हरिलाल की भूमिका में अंकित जाट और चंद्रशेकर कुरील ने भी अच्छा अभिनय प्रस्तुत किया। कस्तूरबा की भूमिका में शिवानी गुप्ता ने भी पति और बेटे के बीच असमंजस में फंसी महिला के किरदार को बखूबी निभाया है।
गुलाब की भूमिका में इशिता जोशी का अभिनय भी प्रभावशाली था। इतनी कम उम्र में भी इशिता ने अलग अलग भावनाओं की अभिव्यक्ति को बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया है।
नाटक के निर्देशक की प्रशंसा करनी होगी की इतनी बड़ी टीम और इतना गहन विषय होने के बावजूद उन्होंने नाटक में कसावट बरकरार रखी है। कुछ एक जगह संपादन की गुनजाईश महसूस होती है पर बाकी नाटक दर्शको को बांधे रखता है।
दृश्यों के अदला बदली में किरदारों के बीच समन्वय की और जरूरत है। प्रकाश के साथ नाटक में और खेल खेला जा सकता है।