पॉलिटेक्निक ऑडिटोरियम में इप्टा रायगढ़ के चैबीसवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह के चौथे दिन भिलाई इप्टा के दो नाटक एक के बाद एक मंचित हुए ।
चारू श्रीवास्तव और शैलेश कोडापे के निर्देशन में तैयार किया गया नाटक ‘थाली का बैंगन’ आज के धार्मिक अंधविश्वासों से घिरी परिस्थितियों के प्रति चिंता व्यक्त करता है । आर्थिक रूप से कमज़ोर एक व्यक्ति मजबूरी में खाने के लिए कम दाम में कीड़े लगे बैंगन खरीदकर लाता है। कीड़ों की वजह से बैंगन में तरह-तरह की आकृतियाँ उभरती हैं। उन्हीं आकृतियों में उसे एक आकृति मुस्लिम समुदाय के पवित्र चिन्ह जैसी दिखाई देती है। वह अपनी पत्नी को यह आकृति दिखाता है। उसकी पत्नी के ज़रिये पूरी बस्ती में यह बात फैल जाती है कि उसके घर में मोहम्मद पैगम्बर ने बैंगन में दर्शन दिये हैं। लोगों की अंधी आस्था रूपये, पैसे, जेवर के चढ़ावे के रूप में नज़र आती है। कुछ दिन बाद जब लोगों का मोहभंग होने लगता है तो लालची व्यक्ति बैंगन में ओम की आकृति बनाकर और कुछ दिन बाद क्राॅस बनाकर लोगों को बेवकूफ बनाता है। धीरे-धीरे इस बैंगन की वजह से बस्ती में कलह और फिर दंगे होने लगते हैं। दंगों की वजह से उसके दोस्त की जान चली जाती है। उसे अपनी गलती का अहसास होता है और वह सबके सामने अपनी गलती स्वीकार कर बस्ती में पुनः एकता और भाईचारा स्थापित करता है। इस कहानी के लेखक हैं कृष्ण चंदर।
दूसरा नाटक था ‘क्षमादान’। मूल लेखक लियो टाॅल्स्टाॅय की कहानी का नाट्य रूपान्तरण किया है प्रेमचंद ने। निर्देशन है चारू श्रीवास्तव का। लियो टॉलस्टॉय की कहानी ‘क्षमादान’ एक ऐसे व्यापारी भागीरथ की कहानी है, जो व्यापार के सिलसिले में अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकलता है। रास्ते में रात बिताने के लिए एक सराय में शरण लेता है। वहाँ उसकी मुलाकात एक पुराने मित्र से होती है। सुबह तड़के मित्र को बिना बताए भागीरथ अपने गंतव्य की तरफ निकल पड़ता है। रास्ते में उसे पता चलता है कि सराय में रात्रि में उसके मित्र का कत्ल हो गया है और शक की सुई भागीरथ पर है। यह शक यकीन में तब बदल जाता है जब भागीरथ के सामान की तलाशी में उसके पास से खून सना खंजर मिलता है। अचंभित भागीरथ को कुछ समझने से पहले जेल में डाल दिया जाता है। जेल में 26 वर्ष बाद भागीरथ की मुलाकात एक अन्य कैदी बलदेव सिंह से होती है। बलदेव की हरकतों से भागीरथ को लगता है कि उसका कोई न कोई संबंध उस कत्ल से अवश्य है, जिसकी सज़ा वह भुगत रहा है।