दूसरे दिन की शुरुआत दिवाकर राव वासनिक एवं साथियों के सेमीक्लासिकल नृत्य से हुई । दूसरा नृत्य था वाईएसडी ग्रुप का, जो ‘ट्रिब्यूट टू इंडिआस डॉटर’ थीम पर था । उसके बाद रायपुर इप्टा द्वारा हिंदी की दो प्रसिद्ध साहित्यिक रचनाओं के गम्मत रूपान्तरण प्रस्तुत हुवे । पहला नाटक था मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कहानी ‘ब्रम्हराक्षस का शिष्य’, जिसका गम्मत रूपान्तरण और निर्देशन किया निसार अली ने ।

श्राप देने और शापित होने के अनेकानेक किस्से जनमानस में प्रचलित हैं । ज्ञान की खोज में दर-ब-दर भटकता शिष्य ले देकर सुदूर काशी पहुँचता है, जहाँ बटुकों की उलाहना भरी मजाकिया सलाह पर ‘सिंहद्वार’ पार कर वह गुरु के ‘तिलिस्मी भवन’ में गिरते-पड़ते प्रवेश करता है। काफी जद्दो-जेहद के बाद जहाँ ‘गुरु-दर्शन’ प्राप्त होता है। गुरुचरणों में विनम्र प्रार्थना के साथ शिष्य की सशर्त शिक्षा आरम्भ होती है । आवारा शिष्य का महान गुरु के सान्निध्य में शिक्षित होने और ‘शापित’ होने की कथा है ‘ब्रम्हसराक्षस का शिष्य’ । भारत के किसी भी लोकनाट्य शैली में मुक्तिबोध की रचना का, इप्टा रायपुर द्वारा प्रस्तुति का यह प्रथम प्रयास था ।

इसके बाद दुसरे नाटक हरिशंकर परसाई के व्यंग्य पर आधारित नाटक ‘टैच बेचइया’ का मंचन हुआ । इसका गम्मत रूपान्तरण किया है जीवन यदु ने और निर्देशक हैं निसार अली।

गाँव के दो हमउम्र दोस्त, समारू और दुलारू की कथा है ‘टाॅर्च बेचने वाले’ का यह रूपांतरण है । आर्थिक दिक्कतों में उलझे मित्रों के पास ‘चोंगी-माखुर’ खरीदने लायक औकात बची नहीं। दोनों भाग्य-भरोसे ‘उत्ती’ और ‘बुड़ती’ दिशा में निकल पड़ते हैं किस्मत आजमाने, इस उम्मीद के साथ कि तीन बरस बाद यहीं मिलेंगे। पहला सस्ती टोर्च बचते भटकता है, दर-ब-दर। दूसरा ‘भीतर के अंधेरे का डर’ बता, भक्तों को ‘भीतर के टैच बत्ती’ जलाने का सर्वोत्तम उपाय बताता, चढ़ावा बटोरते, छप्पन भोग लगाते सुखी जीवन जी रहा है।

वैश्विक उपभोक्ता बाजार और तिलस्मी बाबा बाजार के गलबहिंया डाले सुनामी युग में, चिरहा-फटहा पंहिरे जोक्कड़, लोटावाली नजरिया, भक्तिभाव में झूमते भक्तगण, ‘बाबा दुलारनाथ’ का लोकल से लेकर ग्लोबल तक फैलता बाजार ! नाचा शैली की छौंक लगाते दृश्यों की खेप-दर-खेप, लबालब अपनेपन से सराबोर करने लगती है।

कुल मिलाकर नाटक की सामयिक अंतर्वस्तु और अभिनेता की निजी मेहनत से कमाई ‘आजाद गम्मत अभिनय शैली’ दर्शकों से शाना-ब-शाना जुड़ नजदीकी का अहसास रचती है। ‘टैच बेचईया’ पिछले 25 वर्षों से नुक्कड़, चैपाल और मंच पर लगातार खेला जा रहा है। प्रगतिशील कवि-गीतकार जीवन यदु द्वारा नाचा शैली में रूपान्तरित ‘टैच बेचईया’ और ज्यादा सामयिक और धारदार बन गया है जिसके पैनेपन को हम अपनी उंगलियों पर परख सकते हैं बहुत करीब से।

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