यह नाटक सालों से समाज द्वारा शोषण का शिकार हो रही महिलाओं पर केंद्रित है। नाटक में दर्शाया गया है कि कैसे पितृसत्तात्मक समाज महिलायों का शोषण करता है। ये समाज बहु, बहन, माँ और प्रेमिका चाहता है, लेकिन बेटी नहीं चाहता। कभी बेटी की भ्रूण हत्या की जाती है तो कभी दहेज़ के लोभी उसे अपने लालच की आग में जला देते है। कभी पुरुष स्त्री को अपनी दरिंदगी और हवस का शिकार बनाते है और इसी तरह लगातार स्त्री का समाज में शोषण किया जाता है।
नाटक में सभी कलाकार युवा है और उनका जोश भी नाटक खेलते समय झलकता है। नाटक ये सवाल खड़ा करता है कि अगर स्त्री नहीं होगी तो प्रकृति का चक्र रुक जाएगा। नाटक के अंत में जब महिलाये पुरुषो का खात्मा करने पर आमादा हो जाती है तब नायिका उन्हें रोककर समझाती है कि वे पुरुषो द्वारा की जा रही गलती को न दोहराये। नाटक का प्रस्तुतीकरण नाटक के सन्देश के साथ स्पष्ट रूप से न्याय करता है।