जिंदगी और जोंक की कहानी अमारकान्त के उपन्यास पर आधारित है। कहानी में एक भिखारी मोहल्ले पर डेरा जमाता है। तभी एक घर में साड़ी चोरी होने की खबर मिलती है और अजनबी चेहरा होने के कारण लोग भिखारी पर शक करते है और उसे खूब मारते है। बाद में साड़ी घर पर ही मिल जाती है। इस वाक्ये के बाद लोगो के मन में भिखारी के प्रति सहानुभूति जग जाती है। उसका नामकरण भी किया जाता है और अब उसे लोग रजुआ पुकारने लगते है और साथ ही घर के छोटे मोटे काम भी कराने लगते है। रजुआ वक्त के साथ ढीठ हो जाता है और अब घर की महिलाओं से मजाक भी करने लगता है। इसी बीच गांव में हैजा फ़ैल जाता है और रजुआ बीमार पड़ जाता है। एक लड़का खबर लेकर आता है कि रजुआ मर गया है। लेकिन बाद में रजुआ आकर बताता है कि उसके पैर पर कौवा बैठ गया था और इस डर से की वो मर जायेगा उसने ये बात फैलाई थी।

कहानी में बताया गया है कि कैसे विषम परिस्थितियों में भी इंसान की जिजीविषा उसे जीवित रखती है। कहानी में ये भी दर्शाया गया है कि कैसे अफवाह लोगो के रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुकी है। लोग बातों में अपनी कल्पना के बीज घुसाकर बिलकुल नए आयाम बना लेते है जो कभी कभी सच से कोई वास्ता नहीं रखते।

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