गांधी की हत्या करने जा रहे चार लोगो में एक इसे लेकर आशंकित है की गांधी को मारा जाए या नही। शंकित युवक को तैयार करने अदालत बैठाई जाती है और उसे गांधी का पक्ष रखने को कहा जाता है।

गांधी का पक्ष रखने वाला व्यक्ति गांधी की भूमिका में आ जाता है और गांधी के ऊपर लगाए गए आरोपो का जवाब गांधी बनकर देता है। शंकित व्यक्ति के साथी गांधी पर एक एक कर आरोप लगाते है और गांधी बारी बारी से आरोपो पर अपना नजरिया प्रस्तुत करता है। आरोपो पर गांधी के तर्क सुनकर उसके साथी निशब्द होने लगते है।

नाटक ये बात बहुत बारीकी से रेखांकित करता है की गांधी ने अपने जीवन काल में जो भी फैसले लिए सोच समझकर लिए और उन सभी फैसलो के पीछे तर्क और माकूल वजहें रही है। उनके विरोधी जब उनपर आरोप लगाते है तो वे उन वजहों को अनसुना कर देते है क्योंकि वे जानते है उनके पास तर्क नही है और गांधी के तर्कों में दम है।

नाटक में उन सारे प्रसंगों का उल्लेख है जिनको लेकर गांधी पर हमेशा सवाल उठाये जाते रहे है, चाहे वो गांधी का भगत सिंह और उनके गरम दल के अन्य नेताओ को लेकर उनका रुख हो या उनके तरीके को लेकर गांधी और उनके बीच असहमति। इसके अलावा गांधी के नेहरू और जिन्नाह को लेकर उनके विचार पर भी प्रकाश डाला गया है। नाटक में विभाजन और उसके दौरान उनके आमरण अनशन आंदोलन का भी जिक्र है

गांधी ने कभी भी अपने सही होने का दावा पेश नही किया, गांधी ने हमेशा अपने फैसलो को सत्य के साथ उनका प्रयोग बताया है। नाटक में ये बात स्पष्ट हो जाती है की गांधी का विरोध करने वालों ने गांधी को न पढ़ा है न समझा है। मुकदमे के दौरान बाकी तीन साथी अनेक बार कहते है की शंकित युवक को मुकदमे से पहले गांधी की किताबे नही पढ़ने देनी चाहिए थी क्योंकि उन्ही किताबो से ये तर्क निकले है। अगर गांधी का विरोध करने वाले उन्हें समझ ले तो उनकी गलतफहमियां दूर हो सकती है। कल भी समाधान गांधी थे और आगे भी समाधान गांधी ही रहेंगे।

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