इप्टा रायगढ़ द्वारा प्रति वर्ष देश के हिंदी रंगमंच के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहने वाले रंगकर्मी को शरदचंद्र वैरागकर स्मृति रंगकर्मी सम्मान दिया जाता है। यह सिलसिला 2010 से चल रहा है। शरदचन्द्र वैरागकर की स्मृति में प्रति वर्ष दिये जाने वाले इस रंगकर्मी सम्मान के लिए रू. 21000/- की नकद राशि एवं सम्मान पत्र प्रदान किया जाता है। इप्टा रायगढ़ के अतिरिक्त नगर की अन्य सांस्कृतिक-सामाजिक संस्थाएँ भी चयनित रंगकर्मी को सम्मानित करती हैं। साथ ही सम्मानित रंगकर्मी का एक नाटक उस वर्ष आयोजित होने वाले राष्ट्रीय नाट्य समारोह में मंचित किया जाता है।
शरदचंद्र वैरागकर पेशे से एस.बी.आर. महाविद्यालय, बिलासपुर में गणित के प्राध्यापक रहे परंतु वे बिलासपुर के मराठी शौकिया रंगमंच का सुपरिचित नाम थे। उन्होंने बिलासपुर के महाराष्ट्र मंडल एवं भगिनी मंडल में अनेक मराठी नाटकों का निर्देशन सन् 1970 से 1983 के बीच किया, जिनमें प्रमुख नाटक हैं:- रायगडाला जेव्हा जाग येते, घरात फुलला पारिजात, अश्रुंची झाली फुले, प्रेमा तुझा रंग कसा, दोन ध्रुवांवर दोघे आपण, मंतरलेली चैत्रवेल आदि। सेवानिवृत्ति के पश्चात वे रायगढ़ में इप्टा की गतिविधियों में रूचि लेते रहे। नाट्यजगत से उनके जुड़ाव के कारण उनके पुत्र उल्हास वैरागकर और पुत्री उषा आठले ने उनकी स्मृति में इप्टा के माध्यम से यह सम्मान देने का बीड़ा उठाया। अब तक यह सम्मान 2010 में श्री राजकमल नायक, रायपुर, 2011 में श्री संजय उपाध्याय, पटना, 2012 में श्री अरूण पाण्डेय, जबलपुर, 2013 में श्री जुगलकिशोर, लखनऊ, 2014 में सुश्री सीमा बिस्वास, मुंबई, 2015 में श्री मानव कौल, मुंबई, 2016 में श्री रघुबीर सहाय, मुंबई, 2017 में श्री बंसी कौल, भोपाल, दिसंबर 2017 में श्री सीताराम सिंह, पटना को प्रदान किया जा चुका है।
इसी कड़ी में दसवाँ शरदचंद्र वैरागकर रंगकर्मी सम्मान कोसल नाट्य अकादमी, रायपुर के निर्देशक श्री मिज़ा मसूद को प्रदान किया जा रहा है। मिज़ा मसूद छत्तीसगढ़ का जाना माना नाम है। वे न केवल लगभग पचास वर्षों से रंगमंच की दुनिया में सक्रिय हैं, बल्कि आकाशवाणी रायपुर के लोकप्रिय अनाउंसर भी रहे हैं। इसके अलावा अनेक खेलों के काॅमेन्ट्री प्रसारण के लिए भी वे राष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते हैं। उन्होंने पाकिस्तान में हुई प्रथम एशिया कप हाॅकी प्रतियोगिता, पंचम विश्वकप हाॅकी, एशियाड 1982, चैम्पियन ट्राॅफी, सिओल ओलम्पिक 1988 के अलावा अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खेलों के प्रसारण में हिंदी कमेन्टेटर के रूप में योगदान दिया है
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं जयंती के अवसर पर नाटक ‘सुरता बलिदान के’, इसी विषय पर केन्द्रित दूरदर्शन से प्रसारित – ‘भारतायन’ की कुछ कड़ियों का लेखन तथा रेडियो से प्रसारित धारावाहिक ‘इतिहास के पन्नों से – स्वाधीन छत्तीसगढ़ की गाथा’ का एक वर्ष तक लेखन-निर्देशन किया। बीबीसी और प्रसार भारती के साझा प्रोजेक्ट एल.ई.पी. फेज एक और दो में उनकी भागीदारी रही। आकाशवाणी के लिए अनेक नाटकों एवं रूपकों का लेखन एवं प्रस्तुतीकरण भी मिर्ज़ा मसूद ने किया है।
लगभग अस्सी नाटकों का निर्देशन कर चुके मिर्ज़ा मसूद ने पर्यटन मंडल छत्तीसगढ़ के लिए सीमा कपूर के निर्देशन में महानदी पर निर्मित वृत्तचित्र का शोध आलेख तैयार किया, जिसमें नीरज के गीत, हृदयनाथ मंगेशकर का संगीत एवं आवाज़ लता मंगेशकर की है।
स्व. हबीब तनवीर के साथ सन् 1973 में नाचा थियेटर वर्कशाॅप में प्रतिभागिता निभाने के बाद भिलाई, रायपुर, बिलासपुर, जगदलपुर, दल्लीराजहरा, अंबरगाँव, नांदेड, नागपुर में नाट्य कार्यशालाएँ आयोजित कीं। अभी रंगकर्म में सक्रिय जो पीढ़ी छत्तीसगढ़ में है, उनमें से अधिकांश रंगकर्मियों ने मिर्ज़ा मसूद के निर्देशन में कोई न कोई नाटक अवश्य किया है। उन्होंने अपने दीर्घ रंग-जीवन में अनेक प्रकार के और अनेक शैलियों के नाटक किये। प्रेमचंद, रेणु, चेखव और उग्र की कहानियों के नाट्य रूपान्तरण और छत्तीसगढ़ की लोककथाओं के मंचन भी उन्होंने किये। अनेक नुक्कड़ नाटक लिखे और खेले भी। पिछले दस वर्षों से ‘बच्चों के लिए बच्चों के साथ’ वे प्रतिवर्ष रंगकर्म कर रहे हैं।
रंगमंच को समर्पित ऐसे रंग-व्यक्तित्व को सम्मानित कर रायगढ़ इप्टा खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। श्री मिज़ा मसूद का सम्मान समारोह 27 जनवरी 2019 को सुबह 11 बजे होटल साँईश्रद्धा में आयोजित किया गया है। उनके निर्देशन में उनके द्वारा ही लिखित नाटक ‘सुबह होने वाली है’ का मंचन संध्या 7 बजे पाॅलिटेक्निक आॅडिटोरियम में किया जाएगा।