इप्टा रायगढ़ का 23वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह रंग विदूषक भोपाल के तुक्के पे तुक्का से शुरू हुआ। नाटक की कहानी एक रईस जागीरदार के आवारा लड़के “तुक्कू” के इर्द गिर्द घूमती है। तुक्कू को एक दिन एक ज्योतिषी कहता है की वो आला अफसरों के इम्तिहान में पहले तीन में जगह पायेगा। तुक्कू अपनी किस्मत आजमाने राजधानी पहुँच जाता है और किस्मत उसे आला अफसर बना देती है।
नाटक वर्तमान राजनैतिक परीस्थितियों पर कटाक्ष करते हुए दर्शको को गुदगुदाता है। नाटक दर्शाता है की किस तरह हुक्मरान अपने ऐशो आराम के नशे में बेतुके कानून बनाकर जनता का शोषण करते है। नाटक सत्ता और नौकरशाह के संबंधो पर भी गहरा वार करता है ये कहकर की पढ़े लिखे अफसरों को अनपढ़ हुक्मरान आदेश देते है। ऐसे में जनता का शोषण तो होना ही है।
हुक्मरान बिलकुल उस बन्दर की तरह व्यवहार करते है जो इधर उधर उछल कर खूब प्रयास दिखता है लेकिन हासिल कुछ नहीं कर पाता। हुक्मरान भी कुछ इसी तरह बेतुके नियम क़ानून बना कर जनता को अपने प्रयासों का एहसास दिलाती है लेकिन जैसे वो प्रयास असफलता में बदलने लगते है, हुक्मरान कुछ नए बखेड़े खड़े कर जनता का ध्यान भटकाते है और उन्हें अपने प्रयासों के दांव पेंच में अनवरत फसाए रखते है। जनता बेचारी सब्र बांधकर गद्दी के अत्याचार देखती है। लेकिन ऐसा नहीं है की जनता केवल सहती रहती है, नाटक ये भी दर्शाता है की जनता अगर सत्ता पर बिठा सकती है तो तख्तापलट भी कर सकती है।
नाटक की विदुषक शैली बेहद प्रभावशाली है और सभी कलाकार में गजब की स्फूर्ति देखते ही बनती है।